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चार दिनों के कठोर तप के बाद
गंगा के पानी में खड़ा होकर
माँ ने छठ घाट पर सबको
जब सूर्यदेव को अर्घ्य देने को कहा
तो आधुनिक विज्ञान पढ़नेवाला
ईश्वर विरोधी बच्चा चिल्लाया ‘नहीं देता अर्घ्य’ ।
उसने चुनौती के अंदाज में कहा
हे सूर्यदेव, बताओ तुम्हें देव क्यों कहूँ ?
क्यों करूँ तुम्हारी पूजा?
तुम्हारे लिए अर्घ्य क्यों?
मेरे लिए क्यों नहीं?
अणु परमाणु से बना संसार
सब तो हैं एक समान
सब की संरचना समान
हम तुम भी हैं एक समान
तुम भी प्रोटोन, न्युट्रॉन और इलेक्ट्रॉन
मैं भी प्रोटोन, न्युट्रॉन और इलेक्ट्रॉन
क्यों नमन हो तुम्हारा
क्यों न नमन हो हमारा
तुम्हारे सम्मान में क्यों नदी नाले की हो साफ सफाई
क्यों घाट बाट की साज सज्जा
ऐसी विषमता क्यों
तुम्हारी यह दादागिरी क्यों ?
मैं नहीं मानता तुम्हें देव
मेरा मन नहीं मानता तुम्हें देव।
सूर्य बोल उठा
वत्स,ठीक है तुम्हारा कहना
एक सी है हमारी संरचना
बने सभी अणु परमाणु से
सबमें प्रोटोन, न्युट्रॉन और इलेक्ट्रॉन का ही है जाल
पर एक बड़ा अंतर है
तुम सदैव अपने लिए सोचते हो
अपने लिए करते हो
पर मैं अहर्निश दूसरों के लिए सोचता हूँ
दूसरों के लिए करता हूँ
सदैव चलता रहता हँू
कभी रूकता नहीं
कभी सोता नहीं
कभी आराम करता नहीं
सब करता हँू
दूसरों के लिए
मेरा जीवन उत्सर्ग है दूसरों के लिए
बच्चे ने कहा क्यों बाँगते हो
तुम भी तो रात को सोने चले जाते हो
सूर्य ने कहा
नहीं दोस्त रात दिन तो तुम्हारे लिए हैं
मेरे जीवन का बस एक ही अर्थ है चरैवेति चरैवेति
मैं कभी रूकता नहीं कभी थकता नहीं
सुबह हो या शाम
दिन हो या रात
गर्मी हो या बरसात
हर क्षण हर मौसम
बस चलना ही है मेरा काम।
हर क्षण अपने शरीर को जलाता हूँ
गलाता हूँ
मेरे परमाणु मिट जाते हैं
और बनाते हैं फोटोन
जिन्हें भेजता हूँ धरती पर
कण-कण को ऊर्जान्वित करता हूँ
इसी से पृथ्वी पर जल है
जंगल है
फूल हैं
फल हैं
खेत है
खलिहान है
पहाड़ है
खदान है
इसी से प्रकृति का हर कोना गतिमान है
इसी से जन जन के चेहरे पर मुस्कान है
मेरे पास सम दृष्टि है
मेरे लिए सब समान हैं
जन हो या निर्जन
खग विहग हो या वन
जल हो या थल
गरीब हो या अमीर
राजा हो या रंक
मेरी रश्मियाँ सबके लिए समान हैं
मेरी रश्मियाँ बिमारियों में रामबाण हैं
मेरे पास अहं नहीं,
वहं नहीं
पर दुष्टों के लिए रहम नहीं
सूर्य कहता जा रहा था
मानव मानव रहता है
जब अपना अपना करता है
मानव देव हो जाता है
जब दूसरों के लिए गलता है
पर बच्चे की उत्सुकता का कोई अंत नहीं था
पूछ बैठा माना कि तुम हमसे अलग हो, देव हो
पर यह अर्घ्य क्यों?
मम्मी सुन रही थी उसने बताया
मै बताती हूँ कि अर्घ्य क्यों?
अर्घ्य आभार है सूर्य के प्रति
उसके त्याग का
निष्ठा का
समर्पण का
अर्घ्य प्रदर्शन है
सौर ऊर्जा के उपयोग से बनी जीवनदायिनी सामग्रियों का
फल फूल सब्जियों का
अग्नि से बने पाक पकवान का
अर्घ्य आश्वासन है सूर्य को
उसके द्वारा बनाए गए प्राकृतिक संपदा
जल, थल और वायु को स्वच्छ, संरक्षित और सुरक्षित रखने का
अर्घ्य आराधना है
भविष्य की सुरक्षा हेतु अपने परिजनों के लिए
देश और विश्व के बन्धुओं के लिए
समस्त जनबल और पशुबल के लिए
अर्घ्य प्रार्थना है सभी जीवनदायिनी शक्तियों का
जीवन के आधार को सतत गतिमान रखने के लिए
अर्घ्य संकल्प है मानवीय एकजुटता का
रंग, जाति, धर्म और देश की सीमाओं से परे
प्राकृतिक शक्तियों के साथ खड़े होने का
अर्घ्य प्रतीक है
प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का
सहचरी का
सहजीवन का
माँ की वाणी कठोर हो गयी थी
उसने चेतावनी के अंदाज में कहा
याद रखो जबतक सूरज चलता है
तभी तक मानव जिंदा है
बच्चे और माँ आपस में उलझे थे
पर सूर्य चला जा रहा था
अपने शास्वत अंतहीन कर्त्तव्य पथ पर
त्याग के
तपस्या के
निष्ठा और समर्पण के ।
बच्चा अवाक था
निरुत्तर था
सहसा बड़बड़ाने लगा
माँ मैं भी देव बनूँगा
माँ मैं भी देव बनूँगा
माँ मैं भी अर्घ्य दूँगा
माँ मैं भी अर्घ्य दूँगा
और हाथ जलपात्र की ओर उठ गए थे
सूर्यदेव को अर्घ्य देने को।