हम चर्मकार हैं ,
दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
हम कर्मकार हैं , व्यर्थों में भी अर्थ ढूँढते रहते हैं
तुम तो नर को कंधा देकर नामों निशाँ मिटा देते
पशुओं को कंधा दे हमअमृत पान कराते रहते हैंं
हम जीवों की अर्थी में भी नव अर्थ ढूँढते रहते हैं
हम चर्मकार हैं , दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
सदियों तक शोध किया हमने अस्थि मज्जा का मंजन कर
रसायनों का लेप लगा चर्मों पर उनका भंजन कर
चर्मों को अमृत पान करा हम अमर बनाते रहते हैं
हम चर्मकार हैं , दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
चमड़े को काटा पीटा उनको विविध आयाम दिया
हर पैरों के अनुरूप उन्हें जूते का आकार दिया
हर जन के पैरों की रक्षा का हम चक्र बनाते रहते हैं
हम चर्मकार हैं , दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
कितनी ही कठिन परिस्थिति हो कितनी ही भीषण पीड़ा हो
पर्वत की शीतलहरी हो या मरुभूमि की उष्मा हो
हर तापमान हर मौसम से रक्षा कवच बनाते रहते हैं
हम चर्मकार हैं , दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
चाहे कोई भी मज़हब हो चाहे कोई भी पेशा हो
राजा हो या सैनिक हो कोई धावक या वैज्ञानिक हो
हम सभी जनों की सफलता की नयी कहानी गढते हैं
हम चर्मकार हैं , दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
क्या कहूँ इस सृजन मार्ग में कितनी पीड़ा झेली अपमान सहे
बदबू के सागर में डूबे कितने घावों से पीब बहे
इन कष्टों के बावजूद निरंतर जन सेवा में रहते हैं ।
हम चर्मकार हैं , दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
बच्चा जब जनमता है पहला स्वागत हम ही करते हैं
हमारे हाथों में ही वह पहला जग दर्शन करता है
हर माँ की पीड़ा हरने को दिन रात समर्पित रहते हैं
हम चर्मकार हैं , दुनिया का दुःख दर्द मिटाते रहते हैं।
विजय प्रकाश