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रमुआ से अब राम बना दो





एक विनती तो है ये भगवन

मेरी प्रार्थना स्वीकार करा दो

पैरवी पैगाम जैसे हो

लेकिन रमुआ से अब राम बना दो।


चाह नहीं मैं हलुआ पूरी

मुर्ग मुसल्लम खाकर सोऊँ

पर माँड़ भात साग से हरदिन

मेरे पेट की आग बुझा दो।

चाह नहीं कि सूट टाई से सजकर

घर से बाहर जाऊँ

पर धोती अंगोछा से हरदिन

मेरे तन की लाज बचा लो।

चाह नहीं कि राजमहल के पलंग पर

तोषक गद्दा लगवा ही सोऊँ

पर छोटी कुटिया में हरदिन

पुआल की तो सेज लगा दो।

चाह नहीं मँहगे कपड़े पहन

मुन्ना रोज स्कूल को जाए

पर तन ढ़कने को हरदिन

नीकर कमीज तो दिलवा दो।

चाह नहीं कि नेता बनकर

जनतंत्र को गुलाम बनाऊँ

पर गुलामी की बेड़ी हटवाकर

आजादी का अहसास करा दो।

चाह नहीं सर या जी कहवाकर

अपना महिमामंडन करवाऊँ

पर रमुआ की गाली हटवाकर

मुझको भी अब राम बना दोेे।

मुझको भी अब राम बना दोेे।……………